Tuesday, September 11, 2018

आख़िरी टेस्ट में शतक लगाकर कुक ने बनाया नया कीर्तिमान

अपना आख़िरी टेस्ट मैच खेल रहे एलेस्टर कुक ने शतक लगाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है. वैसे तो वे ऐसा करने वाले पहले खिलाड़ी नहीं हैं.
लेकिन उनका आख़िरी टेस्ट शतक इसलिए ख़ास है, क्योंकि उन्होंने अपने पहले टेस्ट में भी शतक लगाया था. ऐसा करने वाले वे इंग्लैंड के पहले क्रिकेटर हैं.
पहले और आख़िरी टेस्ट में शतक लगाने वाले खिलाड़ियों में भारत के मोहम्मद अज़हरुद्दीन के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल, रेजिनाल्ड डफ़ और विलियम पोन्सफोर्ड शामिल हैं.
एलेस्टर कुक ने भारत के ख़िलाफ़ ही अपना पहला टेस्ट खेला था और आख़िरी टेस्ट भी वे भारत के ख़िलाफ़ खेल रहे हैं.
वर्ष 2006 में एक से पाँच मार्च तक नागपुर में हुआ भारत और इंग्लैंड का टेस्ट मैच कुक का पहला टेस्ट मैच था. उस टेस्ट की पहली पारी में कुक ने 60 और दूसरी पारी में 104 रन बनाए थे.
जबकि भारत के ख़िलाफ़ अपने करियर का आख़िरी टेस्ट मैच खेल रहे कुक ने पहली पारी में 71 रन बनाए थे. दूसरी पारी में फ़िलहाल वे शतक बनाकर खेल रहे हैं. ये उनके करियर का 33वाँ शतक है.
वर्ष 2017 के दिसंबर के बाद से उन्होंने पहली बार शतक लगाया है.
पिछले सप्ताह इंग्लैंड की ओर से सर्वाधिक टेस्ट रन बनाने वाले एलेस्टर कुक ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा की थी.
59 टेस्ट मैचों में अपने देश की कप्तानी करने वाले कुक ने कहा कि उन्होंने जितना सोचा था, उससे ज़्यादा हासिल किया है.
भारत के ख़िलाफ़ मौजूदा टेस्ट सिरीज़ इंग्लैंड पहले ही 3-1 से जीत चुका है.
दुनियाभर में टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वाले कुक छठे खिलाड़ी हैं. पहले नंबर पर भारत के सचिन तेंदुलकर हैं.
संन्यास की घोषणा के समय उन्होंने अपने बयान में कहा था, "मैं जानता हूँ कि ये सही समय है. हालांकि मेरे लिए ये एक पीड़ा का विषय भी है. ये सोचकर मुझे दुख होता है कि आने वाले समय में अब मैं अपने साथी खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर नहीं कर पाऊँगा."
एलेस्टर कुक ने 21 वर्ष की उम्र में अपना पहला टेस्ट मैच खेला था. टीम प्रबंधन ने उन्हें 2006 में भारत के ख़िलाफ़ नागपुर टेस्ट में माइकल वॉन की जगह उतारा था. कुक ने दूसरी पारी में शतक लगाया.
कुक बीमार होने के कारण तीसरा टेस्ट नहीं खेल पाए, लेकिन उसके बाद उन्होंने लगातार 159 टेस्ट मैच खेले, जो एक रिकॉर्ड है.
सात ऐशेज़ सिरीज़ में कुक को खेलने का मौक़ा मिला, जिनमें से चार में इंग्लैंड की टीम विजयी रही.
वर्ष 2012 में कुक को एंड्रयू स्ट्रॉस की जगह टीम की कप्तानी मिली. उन्होंने अपनी कप्तानी में इंग्लैंड को 24 टेस्ट मैच जितवाया. सिर्फ़ वॉन ने ही उन्हें ज़्यादा 26 टेस्ट मैच अपनी कप्तानी में जितवाए हैं.
वर्ष 2012 में कुक ने अपनी कप्तानी में भारत को भारत में हराया. ऐसा 27 साल बाद हुआ.
कप्तान के रूप में उन्होंने दो ऐशेज़ सिरीज़ जीते. इंग्लैंड की ओर से  हज़ार टेस्ट रन बनाने वाले वे पहले खिलाड़ी बने.
कुक ने इंग्लैंड की ओर से 92 एक दिवसीय मैच भी खेले हैं और 36.40 की औसत से 3240 रन बनाए हैं. 2014 के बाद से उन्होंने कोई वनडे नहीं खेला है. उन्होंने इंग्लैंड की ओर से चार टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच भी खेला है.
मध्य एशियाई देशों में मीडिया इस बात पर हैरान है कि दक्षिण ताजिकिस्तान में मुसलमान उलेमा अपने साप्ताहिक चंदे की राशि, 70 साल तक रूस में वामपंथ लाने वाले बोलशेविक क्रांति के नेता लेनिन की मूर्ति की मरम्मत पर ख़र्च कर रहे हैं.
रेडियो लिबर्टी की ताजिक सेवा के मुताबिक़ शहर तूस की मस्जिदों के इमामों और ख़तीबों ने मस्जिदों में एकत्र होने वाली राशि से रूसी कम्युनिस्ट नेता की मूर्ति शहर के केंद्र में उसी स्तंभ पर फिर से स्थापित कर दी है जहां पर दो साल पहले उसे गिराया गया था.
इस मूर्ति पर फिर से सुनहरा रंग रोग़न किया गया है और इसके टूटे हुए हाथ की जगह नया हाथ लगाया गया है.
तूस शहर की महरीनिसो राजाबोवा का कहना है कि यह विचार ताजिकिस्तान के इमामों का अपना है. उन्होंने फ्रीडम रेडियो को बताया, "उन्होंने प्रतिमा की मरम्मत की और इस स्मारक के आसपास पार्क की भी सफ़ाई की. अब वे फ़व्वारों की भी मरम्मत कर रहे हैं."
एक मस्जिद के इमाम ने फ्रीडम रेडियो से बात की. उन्हें कुल खर्च के बारे में तो जानकारी नहीं थी लेकिन अंदाज़न हर मस्जिद ने हर हफ़्ते लगभग  डॉलर का चंदा लिया.
तूस शहर में लेनिन की यह मूर्ति साल  में सोवियत काल में स्थापित की गई थी और दक्षिण ताजिकिस्तान की यह सबसे बड़ी मूर्ति थी.
स्वतंत्रता के कई साल बाद देश में सोवियत संघ के संस्थापकों की अधिकांश प्रतिमाओं को गिरा दिया गया था लेकिन इस मूर्ति को ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण माना गया और इसे नुकसान नहीं पहुंचाया गया.
हालांकि साल 2016 में स्थानीय अधिकारियों ने सोवियत काल की मूर्तियों को हटाकर ताजिक राष्ट्रीय नायकों की मूर्तियां लगाने का सिलसिला शुरू किया. उन्होंने लेनिन की इस प्रतिमा को ओबशोरोन गांव पहुंचा दिया जहां एक गोदाम में वह ख़राब होती रही.
मस्जिद के इमामों ने यह तो स्पष्ट नहीं किया कि उन्होंने लेनिन की मूर्ति फिर से स्थापित करने के लिए राशि क्यों जमा की लेकिन शहर का मुख्य स्तंभ लगभग दो साल तक ख़ाली रहा था और वहां कोई प्रतिमा नहीं लगाई गई थी.
इस घटना के संदर्भ में सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रिया सामने आई है और कई टिप्पणियाँ ऐसी हैं जैसे उन्हें इस बात पर विश्वास ही ना हो रहा हो.
फ्रीडम रेडियों की वेबसाइट पर एक यूज़र ने टिप्पणी की है, 'वे धार्मिक गुरू नहीं हैं, वे बुतपरस्त (मूर्ती-पूजक) हैं'.
अन्य लोगों का कहना था कि यह राशि ग़रीबों की मदद पर खर्च हो सकती थी.
कुछ लोगों ने ताजिकिस्तान की वर्तमान स्थिति की तुलना सोवियत युग की जीवन शैली से की है. महाजिर नाम के एक व्यक्ति ने लिखा कि 'उन्होंने ठीक किया. अगर लेनिन न होते तो सभी मध्य एशियाई देश, अफ़ग़ानिस्तान की तरह अनपढ़ होते.'
कुछ लोगों का कहना था कि देश के अतीत को स्वीकार करना चाहिए. फ्रीडम वेबसाइट पर एक और टिप्पणी थी कि लेनिन हमारे नेता थे या नहीं, लेकिन वह हमारा इतिहास हैं और हमारे बच्चों को इस बारे में पता होना चाहिए."

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